साखी (अभ्यास माला)
अवतरण -1
- जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मैं नाहि।
- प्रेम गली अति सांकरी, तामे दो न समाय।।
- काकर पाथर जोड़ कै , मस्जिद लई बनाय।
- ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
प्रश्न 1– प्रस्तुत दोहे में ‘मैं’ से क्या तात्पर्य है? मैं के होने पर तथा मैं के ना होने पर क्या-क्या होता है?
उत्तर- प्रस्तुत दोहे में ‘मैं’ से तात्पर्य है- अहंकार।’मैं ‘के होने के भाव में ईश्वर हमारे साथ नहीं होते, मैं के ना होने पर ईश्वर हमारे साथ होते हैं|
प्रश्न 2– कौन सी गली कैसी है? तथा उसमें कौन-कौन नहीं आ सकता?
उत्तर– प्रेम की गली सकरी होती है, उसमें अहंकार और ईश्वर दोनों एक साथ नहीं आ सकते।
प्रश्न 3– क्या-क्या जोड़कर क्या बनाया गया है? तथा किसलिए? समझाकर लिखिए?
उत्तर– कंकड़ और पत्थरों को जोड़कर मस्जिद बनाई गई है। ताकि उसमें मुल्ला चढ़कर अल्लाह करके अपने खुदा को बुला सके।
प्रश्न 4– ‘ता चारि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय’ पंक्ति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में कबीर दास जी बता रहे हैं कि कंकड़ और पत्थरों को जोड़कर मस्जिद बनाई गई है और उसके ऊपर चढ़कर मल्ला अल्लाह करके अपने खुदा को जोर-जोर से आवाज देता हैं जैसे उनका खुदा बहरा हो गया हो।
कुंडलियांँ Sahitya Sagar Workbook Answers – Class 9&10
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अवतरण- 2
- पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजुँ पहार।
- ताते ये चाकी, भली पीस खाय संसार।।
- सात समंदर की मसि करौ, लेखनि सब बनराय।
- सब धरती कागज करौं, हरि गुण लिखा न जाय।।
प्रश्न 1– पत्थर की पूजा के संदर्भ में कबीर दास जी के क्या विचार थे?
उत्तर– कबीरदास जी कहते हैं कि पत्थर पूजने से हरि मिलते हैं तो मैं उस बड़े से पहाड़ को क्यों ना पुजूं, इससे अच्छी तो वह चक्की है जिसका पिसा सारा संसार खाता हैं तो मैं इस चक्की की क्यों ना पूजा करूं।
प्रश्न 2– ईश्वर के गुणों की महिमा को लिखने के संदर्भ में कबीर दास जी ने क्या-क्या साधन बताए हैं?
उत्तर- ईश्वर के गुणों की महिमा के लिखने के संदर्भ में कबीर दास जी ने कहा है कि यदि सात समुंदर के जल की स्याही बना ली जाए तथा सभी वनों के पेड़ की लेखनी बना ली जाए एवं संपूर्ण धरती को कागज बना लिया जाए तब भी ईश्वर की महिमा को लिखना असंभव है।
प्रश्न 3– भक्ति की मुख्यतः कितनी धाराएं हैं? कबीर दास जी किस भक्ति धारा के कवि थे। आपको कौन सी भक्ति धारा पसंद है तथा क्यों?
उत्तर- भक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है- सगुण और निर्गुण। कबीरदास निर्गुण भक्ति धारा के कवि थे। मुझे निर्गुण भक्ति पसंद है- क्योंकि ईश्वर हमारे मन के भीतर समाहित होते हैं, उसे दूसरों को दिखाने की कोई जरूरत नहीं होती।
प्रश्न 4- शब्दार्थ लिखिए –
उत्तर- पाहन – पत्थर
पहार – पहाड़
चाकी – चक्की
मसि – स्याही
बनराय – वन
कागद – कागज़।