मातृ मंदिर की ओर | Sahitya Sagar | Workbook Answers| Class 9th & 10th| ICSE Board

Matri Mandir Ki Oor (मातृ मंदिर की ओर)

अभ्यास-माला

अवतरण-1

व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश,

चलूँ उसको बहलाऊँ आज

बताकर अपना सुख दुख उसे

हृदय का भार हटाऊँ आज

चलूँ माँ के पद-पंकज पकड़

नयन जल से नहलाऊँ आज ।

मातृ-मंदिर में मैंने कहा

चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।

प्रश्न 1. कवयित्री का मन आज कैसा है तथा वह क्या करना चाहती है?

उत्तर. कवयित्री का मन आज दुखी है तथा वह मातृ मंदिर में जाकर अपना दुख कम करना चाहती हैं।

प्रश्न 2. कवयित्री अपने हृदय के भार को किस प्रकार दूर करना चाहती है?

उत्तर. कवयित्री मातृ मंदिर में जाकर मांँ को अपने सुख-दुख बताकर तथा अपने आंसुओं से भारत माता के चरणों को धोकर अपने हृदय के भार को दूर करना चाहती हैं।

प्रश्न 3. मातृ-मंदिर से क्या तात्पर्य है? कवयित्री मातृ-मन्दिर में जाकर क्या करना चाहती है?

उत्तर. मातृ मंदिर अर्थात् भारत माता का मंदिर कवयित्री मंदिर में जाकर मांँ को अपने दुख बताकर अपने हृदय के भार को कम करना चाहती हैं।

प्रश्न 4. कवयित्री किसके चरण पकड़कर क्या करना चाहती है तथा क्यों?

उत्तर. कवयित्री भारत माता के कमल रूपी चरणों को पकड़कर अपने आंसुओं से उन्हें धोना चाहती है ताकि उनके मन की पीड़ा थोड़ी कम हो जाए।

अवतरण-2

किन्तु यह हुआ अचानक ध्यान

दीन हूँ छोटी हूँ अज्ञान।

मातृ मन्दिर का दुर्गम मार्ग

तुम्हीं बतला दो हे भगवान ।।

मार्ग के बाधक पहरेदार

सुना हैं ऊँचे-से सोपान

फिसलते हैं ये दुर्बल पैर

चढ़ा दो मुझको है भगवान।।

प्रश्न 1. कवयित्री को अचानक क्या ध्यान आता है?

उत्तर.कवयित्री को अचानक ध्यान आता है कि मंदिर की सीढ़ियांँ बहुत ही दुर्गम है तथा उनमें चढ़ने के लिए वह अभी बहुत अज्ञान दिन तथा छोटी हैं।

प्रश्न 2. मातृ-मन्दिर का मार्ग कैसा है तथा वह भगवान से क्या प्रार्थना करती है?

उत्तर. मातृ मंदिर का मार्ग बहुत दुर्गम है, इसीलिए वह भगवान से यह प्रार्थना करती है कि हे! भगवान उन्हें शक्ति देकर उस मार्ग को सरलता से पार करवा दें।

प्रश्न 3. मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ हैं तथा उसकी अपनी क्या कमजोरी है?

उत्तर. मार्ग में बहुत ही सीढ़ियांँ है जिनसे जाना बहुत कठिन है तथा अपनी कमजोरी अज्ञानता छोटे पन के कारण वे यह करने में असफल है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए

अचानक, दीन, दुर्गम बाधक सोपान दुर्बल।

उत्तर. अचानक – एकाएक

दीन – गरीब

दुर्गम – जहां जाना कठिन हो

बाधक – रुकावटें

सोपान – सीढ़ियांँ

दुर्बल – कमज़ोर

अवतरण-3

अहा वे जगमग जगमग जगी,

ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ

शीघ्रता करो वाद्य बज उठे

मला मैं कैसे जाऊँ वहाँ?

सुनाई पड़ता है कल-गान,

शीघ्रता करो मुझे ले चलो,

मातृ मन्दिर में है भगवान

प्रश्न 1. कवयित्री को कहाँ पर क्या दिखाई दे रहा है तथा क्या सुनाई दे रहा है?

उत्तर. कवयित्री को मंदिर पर ज्योतियांँ जगमगाती हुई दिखाई दे रही है तथा उन्हें वह बचते हुए बाजे सुनाई दे रहे हैं।

प्रश्न 2. कवयित्री वाद्य की आवाज़ सुनकर क्या कहती है तथा क्यों?

उत्तर. कवयित्री वाद्य की आवाज सुनकर उत्सुक हो जाती है तथा भी भगवान से शीघ्र ही उन्हें मंदिर पहुंँचाने की प्रार्थना कर रही हैं।

प्रश्न 3. ‘कलगान’ से क्या तात्पर्य है? कलगान सुनकर कवयित्री क्या करना चाहती है तथा क्यों?

उत्तर. कलगान अथात् मीठे गीत कल गान सुनकर कवयित्री भी उस गाने में अपने स्वर मिलाने लगती हैं।

प्रश्न 4. कवयित्री ईश्वर से क्या प्रार्थना करती है तथा क्यों?

उत्तर. वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे ईश्वर मातृ मंदिर तक पहुंँचाने में सहायता करें।

अवतरण-4

चलूँ मैं जल्दी से बढ़ चलूँ

देख लूँ माँ की प्यारी मूर्ति

अहा वह मीठी सी मुस्कान

जगा जाती है, न्यारी स्फूर्ति ।

उसे भी आती होगी याद?

उसे, हाँ आती होगी याद

नहीं तो रुढूँगी में आज,

सुनाऊँगी उसको फ़रियाद ।

प्रश्न 1. कवयित्री कहाँ चलकर क्या देखना चाहती है तथा क्यों?

उत्तर. कवयित्री मातृ मंदिर में चलकर मांँ की सुंदर एवं प्यारी सी मुस्कान को देखना चाहती है क्योंकि मांँ की मुस्कान देखते ही जोश तथा उत्साह जागृत हो जाता है।

प्रश्न 2. मुस्कान के विषय में कवयित्री ने क्या बताया है? वह मुस्कान क्या करती है?

उत्तर. कवयित्री कहती है कि भारत माता की प्यारी मुस्कान देखकर मन में जोश तथा उत्साह जागृत हो जाता है।

प्रश्न 3. किसको किसकी याद आती होगी? याद न आने पर कवयित्री क्या करेगी?

उत्तर. कवयित्री कहती है कि क्या मांँ को भी उनकी याद आती होगी? याद ना आने पर कवयित्री मांँ से रुठ जाएंँगी और अपनी फरियाद तो सुनाएंँगी।

प्रश्न 4. फ़रियाद शब्द से क्या तात्पर्य है? कौन किसको क्या फरियाद सुनाना चाहता है तथा क्यों?

उत्तर. फरियाद शब्द से तात्पर्य है विनती। कवयित्री भारतमाता को अपने सुख-दुख की फ़रियाद सुनाना चाहती है ताकि उनका मन कुछ हल्का हो जाए।

अवतरण-5

कलेजा माँ का मैं संतान

करेगी दोषों पर अभिमान।

मातृ-वेदी पर हुई पुकार,

चढ़ा दो मुझको हे भगवान ।।

सुनूँगी माता की आवाज,

रहूंगी मरने को तैयार

कभी भी उस वेदी पर देव,

न होने दूँ अत्याचार ||

प्रश्न 1. कवयित्री ने माँ के कलेजे तथा अभिमान के विषय में क्या कहा?

उत्तर.कवयित्री ने मांँ के हृदय को अपनी संतान के लिए प्यार तथा ममता का वर्णन किया है तथा भी बता रही है कि चाहे संतान में कितने भी दोष क्यों न हो पर मांँ अपने बच्चों को आसानी से क्षमा करके, गर्व से सीने लगाती हैं।

प्रश्न 2. पुकार कहाँ पर हुई है तथा कवयित्री ईश्वर से क्या प्रार्थना कर रही है?

उत्तर. पुकार युद्ध भूमि पर हुई तथा कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि उन्हें इतनी शक्ति दे कि वह मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर उसकी रक्षा करें।

प्रश्न 3. कवयित्री किसकी आवाज सुनेगी तथा किस बात के लिए तैयार रहेगी तथा क्यों?

उत्तर. कवयित्री कहती है कि वह मांँ की आवाज सुनेंगे तथा मरने के लिए तैयार हो जाएंगे क्योंकि वह अभी भी अपनी मातृभूमि पर अत्याचार नहीं होने देंगी।

प्रश्न 4. कवयित्री कहाँ पर अत्याचार होने नहीं देना चाहती तथा क्यों?

उत्तर. कवयित्री मातृभूमि पर अत्याचार नहीं होने देना चाहती है क्योंकि वह अपनी मातृभूमि को सबसे अधिक प्रेम करती है तथा उसकी रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर सकती हैं।

अवतरण-6

न होने दूंगी अत्याचार

चलो में हो जाऊँ बलिदान ।

मातृ मन्दिर में हुई पुकार

चढ़ा दो मुझको हे भगवान ।।

प्रश्न 1. ‘न होने दूंगी अत्याचार चलो मैं हो जाऊँ बलिदान’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ है कि कवयित्री अपनी मातृभूमि पर किसी भी प्रकार का अत्याचार होते हुए नहीं देख सकती। अत्याचार को रोकने के लिए अपने जीवन का बलिदान भी दे सकती हैं।

प्रश्न 2. मातृ-मन्दिर में हुई पुकार को सुनकर कवयित्री की क्या प्रतिक्रिया थी?

उत्तर. मातृभूमि की पुकार सुनते ही कवयित्री मातृभूमि की ओर बढ़ चली और अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो गई।

प्रश्न 3. प्रस्तुत कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर. प्रस्तुत कविता का उद्देश्य है कि अगर हमारा देश यानी कि भारतमाता हमें मुश्किल परिस्थितियों में पुकारे तो हमें अपने प्राणों का मोह को त्याग कर अपने देश के लिए आगे बढ़कर अपना सर्वस्व बलिदान देना चाहिए।

प्रश्न 4. स्वतंत्रता का मानव जीवन में क्या महत्त्व है? एक अनुच्छेद में अपने विचार लिखिए।

उत्तर. स्वतंत्रता हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। क्योंकि स्वतंत्रता ही मानव को खुली हवा में सांस लेने, अपने मन मुताबिक किसी भी कार्य को करने तथा आजादी से जीने का मौका प्रदान करती है।इसीलिए मानव जीवन में स्वतंत्रता का बहुत अधिक महत्व है।

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